Tuesday, November 15, 2011

कृष्ण जी की सेवा में आधुनिक तकनीक (Modern Technology in the service of Lord Krishna)

सब कुछ संभव है भगवान की सृष्टि में, मॉर्डन टेक्नोलोजी भी भगवान की सृष्टि है, और भगवान की सृष्टि है भौतिक प्रकृति हवा, जल, पहाड़, भूमि हम सब भगवान की सृष्टि है। लेकिन वास्तव में यह टेक्नोलोजी भी भगवान की सृष्टि है, क्योंकि भगवान की प्रदत्त बुद्धि के द्वारा ये सब सृष्ट होते हैं। बुद्धि बुद्धिमता अस्मि : भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं वो बुद्धिमान व्यक्ति की बुद्धि में हूँ और वो विचार मेरे से आते हैं, तो ऐसा नहीं है कि हम भगवान से स्वतंत्र हैं, और हम सब कुछ अपने प्रयास से कर सकते हैं। नहीं ! सबकुछ भगवान के हाथ में है, और इनसे ही यथीष्ट उपर्युक्त बुद्धि आती है जिससे कि हम यह सब चीजों को तैयार कर सकें।

यह सब चीज भगवान का उपहार है, और इन सबसे भगवान की महिमा का प्रचार करना चाहिये। कृष्ण भक्ति प्रचार - दो प्रकार के साधु हैं एक है भजनानंद जो खुद के भजन में संतुष्ट होते हैं। और दूसरे प्रकार का साधु है प्रचारक वो गोष्ठियाँनन्दीपक मतलब गोष्ठी मतलब जन समागम में रहते हैं प्रचार करने के लिये । सब लोगों को कहते हैं - “हे भाईयों, हे बहनों देखो विचार करो, आपके जीवन का क्या उद्देश्य है ?” उद्देश्य होना चाहिये कृष्ण भक्ति का, तो क्यों हम जीवन काम क्रोध मद मोह लोभ का विस्तार करने के लिये इस्तेमाल करते हैं , वरना ये सब कृष्ण सेवा में लगाना चाहिये। हर व्यक्ति का हर प्रयास, हर व्यक्ति का हर वचन, हर व्यक्ति का चिंतन खाली कृष्ण केन्द्रिक हो। पूरे समाज में सभी व्यक्तियों का एक ही चिंतन एक ही ध्यान होगा। कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण । और सब सहयोगिता में कृष्ण सेवा करेंगे, जो संभव होगा कृष्ण भक्ति प्रचार से ।

चैतन्य महाप्रभू बोले कि मेरा नाम कृष्ण हर गाँव हर शहर में हर देश में और हर दिल में प्रसारित और प्रचारित होगा । क्योंकि सबकुछ जो जगत में है वो जगन्नाथ की संपत्ति है, और जगन्नाथ की सेवा में सबकुछ लगाना चाहिये । हम मंदिर में आकर १०० रुपया हुंडी में डालते हैं और सोचते हैं कि मैंने १०० रूपया दिया, ऐसा नहीं कि मैंने जो १०० रुपया दिया वो भी भगवान की संपत्ति है और जेब में जो बाकी का रूपया है वह भी भगवान की संपत्ति है, तो एक दृष्टि में अगर हम सबकुछ नहीं देते हैं तो हम चोर हैं, क्योंकि सबकुछ भगवान को देना चाहिये।

उपनिषद की एक उक्ति के अनुसार भगवान हमको कुछ देते हैं सब कुछ जिसके लिये हम सोचते हैं कि ये मेरी है मेरी संपत्ति है, मेरा घर है, वास्तव में सबकुछ भगवान का है। भगवान हमको जो कुछ देते हैं, वह सब शरीर का पालन करने के लिये इस्तेमाल करना चाहिये लेकिन खुद के लिये ज्यादा नहीं मांगना चाहिये। जो भी जरूरत है शरीर का पालन करने के लिये थोड़ा सा लेना है बाकी भगवान की सेवा में लगाना चाहिये। तो ऐसे कृष्ण भक्ति की प्रचार में जगत की सभी सुविधा भगवान की सेवा में लगाना चाहिये, सब कुछ भगवान की सेवा में लगाना चाहिये ।

साधु का बेरोजगारी में भी जाना निषेध है, तो वह नियम अच्छा है जिससे फ़िर वह साधु फ़िर भोग विलासी नहीं बनेगा । जिससे उस साधु की विरक्ति और तपस्या होगी । लेकिन एक और प्रकार का साधु है जो कि खुद के कल्याण के लिये ही प्रयास नहीं करते, उनका प्रयास है आम लोगों को साधुजन बनाना । और इसलिये जगत में जो सब कुछ है वो गृहण कर सकते हैं । भगवान का नाम प्रचार करने के लिये, और ऐसी सुविधाओं को हम कहते हैं भगवान की सेवा करने के लिये, अर्थात धन ऐश्वर्य में रहने की भी उनकी इच्छा नहीं होती है। कि ये सब मेरे भोग के लिये है। सब सुविधाओं को हम कहते हैं केवल कृष्ण की प्रसन्नता के लिये, कृष्ण की भक्ति प्रचार करने के लिये। तो ऐसे धन ऐश्वर्य के बीच में रहते हुए भी अनासक्त होते हैं ।

भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि भक्त जन इस जगत में लोग रहते हैं लेकिन विरक्त होते हैं कैसे ? पद्म पत्र जैसे, पद्म पत्र तो पानी से उद्घ्रृत होते हैं लेकिन पानी के ऊपर रहते हैं, और अगर ऊपर से बारिश से पानी पद्म पत्र पर गिर जाता है, तो पानी अपने आप उनके ऊपर से गिर जाता है, क्योंकि वो पद्म पत्र तो जल में है लेकिन वो जल का स्पर्श नहीं करते, संबंध नहीं है पानी के साथ। ऐसे ही साधुजन इस भौतिक जगत में रहते हैं, और भौतिक जगत में जो है वो सब चीज इस्तेमाल करते हैं लेकिन वह खुद के भौतिक सुख के लिये नहीं करते हैं, क्योंकि साधुजन की कोई रूचि नहीं होती है इस भौतिक सुख को भोगने की । साधुजन का एक ही उद्देश्य है भगवान कृष्ण, भगवान जगन्नाथ की सेवा करना । वो जानते हैं कि जग में जो भी कुछ है वह भगवान जगन्नाथ, भगवान कृष्ण की संपत्ति है। सब कुछ जो जगत में है वह भगवान की सेवा में लगाना चाहिये ।

तो ये युक्त वैराग्य है, वैराग्य का मतलब अनासक्त होना। तो शुद्ध भक्त जो कि भगवान कृष्ण का प्रचार करते हैं, वे विरक्त होते हैं, और इतने विरक्त होते हैं कि उनको जंगल और पहाड़ जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। धन और ऐश्वर्य के बीच रहते हुए भी इनके मन विचलित नहीं होते हैं, और न ही आकर्षण पैदा होता है भोग विलास के प्रति। ये सब गृहण करते हैं केवल भगवान श्री कृष्ण की भक्ति का प्रचार करने के लिये । यही युक्त वैराग्य होता है।

तो उपाय तो सबसे महत्वपूर्ण नहीं है उद्देश्य सबसे महत्वपूर्ण है। सर्वप्रथम उद्देश्य निश्चित करना चाहिये, फ़िर क्या क्या उपाय से उद्देश्य साधित होगा फ़िर उसका निर्णय करना चाहिये। तो उद्देश्य है कृष्ण भक्ति प्रचार करना । तो क्या उपाय है कृष्ण भक्ति प्रचार करने का, तो जंगल में गुफ़ा में बैठकर तो कृष्ण भक्ति प्रचार नहीं होगा । आधुनिक युग में आधुनिक विधि के अनुसार कृष्ण भक्ति प्रचार करना चाहिये । कृष्ण भक्ति प्राचीन संस्कृति है, लेकिन आधुनिक युग में आधुनिक सुविधा लेकर कृष्ण भक्ति प्रचार करना है। तो टी.वी और माईक नहीं हो तब भी कृष्ण भक्ति प्रचार होगा परंतु अगर ये सब इस्तेमाल करेंगे तो ज्यादा प्रचार कर पायेंगे । इस आधुनिक युग में उन सभी आधुनिक तकनीकों के द्वारा कृष्ण भक्ति प्रचार करना एक अच्छा उपाय है।

लोग निंदा करते हैं कि साधु हैं तो क्या प्लेन में जाते हैं, टीवी में आते हैं, तो क्षमा कीजिये उनको अगर वो कुछ अपराध करते हैं। हम देखते हैं कि ये सब चीज भगवान की सृष्टि है और जो भी सृष्टि जगत में है वह सब भगवान की सेवा में लगाना चाहिये ।और विशेषकर आजकल के जमाने में जिसमें लोगों के मन विचलित होते हैं।

श्री कृष्ण ही भगवान पूर्ण पुरुषोत्तम परमेश्वर हैं, इनकी सेवा करना मानव जीवन का उद्देश्य है। और इस कलियुग में कीर्तन और महामंत्र से कृष्ण भक्ति करना श्रेष्ठ साधना है और वो महामंत्र है “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे,  हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे”

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